Wednesday, 31 August 2017

Monday, September 7, 2020

Bharat me indutrialism ke karan


भारत में निरूद्योगी करण और औद्योगीकरण की शुरुआत
सन 15 सबसे 1720 जानी ब्रिटेन में औद्योगिकरण से पहले भारत में कपड़ा उद्योग सहित विभिन्न तरह के उद्योग अपने चरम पर थे भारतीय कारीगर उत्तम गुणवत्ता के कपड़े बुनते थे जिसकी विश्वभर में बड़ी मांग थी इसी व्यापार से फायदा उठाने के लिए यूरोप के व्यापारी भारत आए बढ़ती मांग को देखते हुए भारतीय व्यापारियों ने तेजी से बढ़ाया। इसी व्यापार पर अधिक नियंत्रण पाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपना राज्य बनाया चलिए पढ़ते ही नीचे इसका हमारे देश के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा।

 बुनकरों का क्या हुआ

सन 1760 के दशक के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के राज की स्थापना के पश्चात महाराज के कपड़ा निर्यात में गिरावट नहीं आई इसका कारण यह था कि ब्रिटिश कपड़ा उद्योग अभी विकसित नहीं हुआ था और यूरोप में वहीं भारतीय कपड़ों की भारी मांग थी इसलिए कंपनी भी भारत से होने वाले कपड़े के निर्यात को ही और फैलाना चाहती थी।

भारत में मैनचेस्टर का आना

सन 1772 में ईस्ट इंडिया कंपनी के अफसर तुला ने कहा था कि भारतीय कपड़े की मांग कभी कम नहीं हो सकती क्योंकि दुनिया के किसी और देश में इतना अच्छा माल नहीं बनता लेकिन हम लेते हैं कि 19 वीं सदी की शुरुआत में भारत के कपड़े याद में गिरावट आने लगी जो लंबे समय तक जारी रही सन 1811 से 1812 में कुल निर्यात में सूती माल का हिस्सा 33% था सन 18 सो 50 से 18 57 में यह मात्र 3% रह गया ऐसा क्यों हुआ इसके क्या प्रभाव हुए?

जब इंग्लैंड में कपड़ा उद्योग विकसित हुआ तो वहां के उद्योगपति दूसरे देशों से आने वाले आयात को लेकर शिकायत करने लगे उन्होंने सरकार पर दबाव डाला कि आयातित कपड़े पर आयात शुल्क वसूल करें जिससे में बने कपड़े भारी प्रतिस्पर्धा के बिना इंजन में आराम से बच सकें दूसरी तरफ उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी पर दबाव डाला कि वह ब्रिटिश कपड़ों को भारतीय बाजारों में भी भेजें 19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटेन के वस्त्र उत्पादों के निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।

इस प्रकार भारत में कपड़ा बुनकरों के सामने एक साथ दो समस्याएं थी उनका निर्यात बाजार गिरा था और स्थानीय बाजार सिकुड़ने लगा था स्थानीय बाजार में मैनचेस्टर से आयातित सामानों की भरमार थी।

कम लागत पर मशीनों से बनने वाले आयातित कपास उत्पादक ने सस्ती ठीक की बुनकर उनका मुकाबला नहीं कर सकते थे सन अट्ठारह सौ पचास के दशक तक देश के बुनकर इलाकों में ज्यादातर बदहाली और बेकारी किसी किस्से की भरमार थी।

सन 18 सो साठ के दशक में बुनकरों के सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई मैं अच्छा का पास नहीं मिल पा रहा था क्योंकि ब्रिटेन अपने कारखानों के लिए भारत से कपास मंगाने लगा था।

भारत में कारखानों का आना

भारत में कहां-कहां पहला मिल सन 18 54 लगा दो साल बाद उसमें द्वारा शुरू होने लगा 18262 तक वहां ऐसे चार मिले काम कर रहे थे उनमें चरण में 1000 तक लिया और 21 साल के थे उस समय बंगाल में जूट मिलने लगी वहां देश की पहली जूट मिल सन 18 55 में और दूसरा 7 साल बाद 18 साल में चालू हुआ।

उत्तरी भारत में एल्गिन मिल अट्ठारह सौ साठ के दशक में कानपुर में गुलाब के साल भर बाद अहमदाबाद का पहला कपड़ा मिल भी चालू हो गया 18 से 74 में मद्रास में भी पहला कताई और बुनाई मिल खुल गया।

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में सन 1894 में सीपी मिल प्रारंभ हुआ विशेषण 1986 बीएमसी कहा जाने लगा।

Tuesday, November 13, 2018

Subscribe Our Newsletter

Trending Posts

Social Follow

Follow by Email

Pages

Text Widget